सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखे, सपने वो है जो आपको नींद ही नहीं आने दे।– अब्दुल कलाम
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Tuesday, April 28, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

                      *ईश्वर और विश्वास:-*

एक पादरी महाशय समुद्री जहाज से यात्रा कर रहे थे, रास्ते में एक रात तुफान आने से जहाज को एक द्वीप के पास लंगर डालना पडा। सुबह पता चला कि रात आये तुफान में जहाज में कुछ खराबी आ गयी है, जहाज को एक दो दिन वहीं रोक कर उसकी मरम्मत करनी पडेगी।
पादरी महाशय नें सोचा क्यों ना एक छोटी बोट से द्वीप पर चल कर घूमा जाये, अगर कोई मिल जाये तो उस तक प्रभु का संदेश पहँचाया जाय और उसे प्रभु का मार्ग बता कर प्रभु से मिलाया जाये।
तो वह जहाज के कैप्टन से इज़ाज़त ले कर एक छोटी बोट से द्विप पर गये, वहाँ इधर उधर घूमते हुवे तीन द्वीपवासियों से मिले। जो बरसों से उस सूने द्विप पर रहते थे। पादरी महाशय उनके पास जा कर बातचीत करने लगे।
उन्होंने उनसे ईश्वर और उनकी आराधना पर चर्चा की.. उन्होंने उनसे पूछा- “क्या आप ईश्वर को मानाते हैं?”
वे सब बोले- “हाँ..।“
फिर पादरी ने पूछा- “आप ईश्वर की आराधना कैसे करते हैं?"
उन्होंने बताया- ''हम अपने दोनो हाथ ऊपर करके कहते हैं "हे ईश्वर हम आपके हैं, आपको याद करते हैं, आप भी हमें याद रखना"..॥''
पादरी महाशय ने कहा- "यह प्रार्थना तो ठीक नही है।"
एक ने कहा- "तो आप हमें सही प्रार्थना सिखा दीजिये।"
पादरी महाशय ने उन सबों को बाईबल पढना, और प्रार्थना करना सिखाया। तब तक जहाज बन गया। पादरी अपने सफर पर आगे बढ गये...।
तीन दिन बाद पादरी ने जहाज के डेक पर टहलते हुवे देखा, वह तीनो द्वीपवासी जहाज के पीछे-2 पानी पर दौडते हुवे आ रहे हैं। उन्होने हैरान होकर जहाज रुकवाया, और उन्हे ऊपर चढवाया। फिर उनसे इस तरह आने का कारण पूछा- “वे बोले ''फादर!! आपने हमें जो प्रार्थना सिखाई थी, हम उसे अगले दिन ही भूल गये। इसलिये आपके पास उसे दुबारा सीखने आये हैं, हमारी मदद कीजिये।"
पादरी ने कहा- " ठीक है, पर यह तो बताओ तुम लोग पानी पर कैसे दौड सके?"
उसने कहा- " हम आपके पास जल्दी पहुँचना चाहते थे, सो हमने ईश्वर से विनती करके मदद माँगी और कहा.., "हे ईश्वर!! दौड तो हम लेगें बस आप हमें गिरने मत देना।" और बस दौड पडे।“
अब पादरी महाशय सोच में पड गये.. उन्होने कहा- " आप लोग और ईश्वर पर आपका विश्वास धन्य है। आपको अन्य किसी प्रार्थना की आवश्यकता नहीं है। आप पहले कि तरह प्रार्थना
करते रहें।"

ये कहानी बताती है... ईश्वर पर विश्वास, ईश्वर की आराधना प्रणाली से अधिक महत्वपूर्ण है॥
संत कबीरदास ने कहा है... “माला फेरत जुग गया, फिरा ना मन का फेर, कर का मन का डारि दे, मनका-मनका फेर॥“"हे ईश्वर!! दौड तो हम लेंगे, बस आप हमें गिरने मत देना॥"...

Saturday, April 25, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

*बुरे समय में भी हमें सकारात्मक रहना चाहिए, तभी सुखी रह सकते हैं*
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एक लोक कथा के अनुसार किसी गांव के बाहर दो संत एक झोपड़ी में रहते थे। दोनों रोज सुबह अलग-अलग गांवों पर जाते और भिक्षा मांगते। शाम को झोपड़ी में लौट आते थे। दिनभर भगवान का नाम जपते। इसी तरह इनका जीवन चल रहा था। एक दिन वे दोनों अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने गए निकल गए। शाम को अपने गांव लौटकर आए तो उन्हें मालूम हुआ कि गांव में आंधी-तूफान आया था।

जब पहला संत अपनी झोपड़ी के पास पहुंचा तो उसने देखा कि तूफान की वजह से झोपड़ी आधी टूट गई है। वह क्रोधित हो गया और भगवान को कोसने लगा। संत ने सोचा कि मैं रोज भगवान के नाम का जाप करता हूं, मंदिर में पूजा करता हूं, दूसरे गांवों में तो चोर-लूटेरे लोगों के घर को सही-सलामत है, हमारी झोपड़ी तोड़ दी। हम दिनभर पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन भगवान को हमारी चिंता नहीं है।

कुछ देर बाद दूसरा संत झोपड़ी तक पहुंचा तो उसने देखा कि आंधी-तूफान की वजह से झोपड़ी आधी टूट गई है। ये देखकर वह खुश हो गया। भगवान को धन्यवाद देने लगा। साधु बोल रहा था कि हे भगवान, आज मुझे विश्वास हो गया कि तू हमसे सच्चा प्रेम करता है। हमारी भक्ति और पूजा-पाठ व्यर्थ नहीं गई। इतने भयंकर आंधी-तूफान में भी हमारी आधी झोपड़ी तूने बचा ली। अब हम इस झोपड़ी में आराम कर सकते हैं। आज से मेरा विश्वास और ज्यादा बढ़ गया है।

*शिक्षा*
इस छोटे से प्रसंग की सीख यह है कि हमें सकारात्मक सोच के साथ हालात को देखना चाहिए। इस प्रसंग में पहला संत दुखी रहता है, क्योंकि उसकी सोच नकारात्मक है। जबकि दूसरा संत सुखी है, क्योंकि वह भगवान पर भरोसा करता है और उसकी सोच सकारात्मक है। बुरे समय में नकारात्मक बातों से बचेंगे तो हमेशा सुखी रहेंगे।

Thursday, April 23, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

               !! *आप जो देते हो, वही पाते हो* !!
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एक किसान था जो रोजाना एक बेकरी वाले (Baker) को मक्खन दिया करता था। एक दिन Baker ने सोचा कि चलो आज मक्खन को तौल कर के देखता हूँ कि जितना मक्खन मैंने माँगा था उतना मुझे मिलता है कि नहीं। और उस Baker को पता लगा कि वो किसान पूरा मक्खन नहीं दे रहा था।

और इस बात के लिये Baker किसान को कोर्ट लेके गया। Judge ने किसान से पूछा कि तुम मक्खन का माप-तौल कैसे करते हो। किसान ने कहा “माई-बाप मैं एक साधारण इंसान हूँ और मेरे पास माप-तौल के लिये कोई मशीन तो नहीं है इसीलिये एक तराजू को उपयोग में लेता हूँ।”

Judge ने पूछा “तुम तराजू में मापन के लिये क्या रखते हो?” किसान ने कहा “माई-बाप कुछ समय पहले से ही ये Baker मुझसे मक्खन लेना सुरू किया था और मैं इससे 1 किग्रा ब्रेड लेता था।” रोज जब Baker मक्खन लेने आता था तो वो मेरे लिये ब्रेड लेके आता था और उसी ब्रेड के वजन से मैं इनको तौल के देता था। इसलिये अगर हममें से कोई गुनाहगार है तो वो Baker खुद ही है।

*शिक्षा :-*
उपरोक्त कहानी से हमें यह सिख मिलती हैं कि हम दूसरों को जो देंगे, बदले में हमें वहीं मिलेगा। अतः दूसरों को जो भी दे, सोच-समझकर ही देना

Wednesday, April 22, 2020

THE 50TH ANNIVERSARY OF EARTH DAY

The “green things growing” whisper me
Of many an earth-old mystery.
–Eben Eugene Rexford

Earth Day 2020 will mark the 50th anniversary of this holiday. Typically, Earth Day is assigned a different theme or area of focus each year; this year’s theme is Climate Action.

Most years, Earth Day events range from river cleanups to invasive removals. With social distancing in place for many of us this April, Earth Day has gone digital. Virtual events, like environmental lectures and films, will take place on Earth Day (Wednesday, April 22) instead. To see a catalogue of official events, visit earthday.org.
Of course, social distancing doesn’t mean that you can’t go outside and enjoy nature, as long as you do so responsibly! Nature is not cancelled! 

WHAT IS EARTH DAY?

Ever wonder how Earth Day began? The first Earth Day was held on April 22, 1970, with the goal of raising awareness about mankind’s role in protecting our natural world. On this date, 20 million Americans ventured outdoors and protested in favor of a more eco-conscious society.
It’s hard to believe today, but at the time, many people were not aware of some serious environmental issues—from air pollution to toxic dumps to pesticides to loss of wilderness. 
In 1970, Wisconsin Senator Gaylord Nelson and activist John McConnell separately asked Americans to join in the grassroots demonstration. McConnell originally chose the spring equinox (March 21, 1970) and Nelson chose April 22, which ended up becoming the official celebration date. (Given that the date of the spring equinox changes over time, it could have made things more complicated to go with that date!)
Earth Day started out as more of a political movement, though today it has become a popular day for many communities to gather together and clean up litter, plant trees, or simply reflect on the beauty of nature. We’ve provided a list of activities and projects that you can do to improve your local environment further down the page!

Tuesday, April 21, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞
       
 *📚‘ मिलियन रुपए की पेंटिंग ‘📚*

पिकासो स्पेन में जन्मे एक बहुत मशहूर चित्रकार थे | उनकी पेंटिंग दुनियाभर में करोड़ो रुपए में बिका करती थी | दुनियाभर के लोग उनकी पेंटिंग के दीवाने थे |

एक बार पिकासो किसी काम से कही जा रहे थे, तभी वे रात  को किसी छोटे शहर में होटल में रुके | वहां के लोग उन्हें नहीं पहचानते थे कि वे इतने मशहूर चित्रकार है |

लेकिन उसी होटल में ठहरी एक महिला की नजर उन पर पड़ी और वे पिकासो को पहचान गयी | अब ये महिला पिकासो के पास गयी और बोली “सर मैं आपकी बहुत बड़ी प्रसंशक हूँ | प्लीज , मेरी लिए एक पेंटिंग बना दीजिए |”

पिकासो ने कहा “अभी फिलहाल मेरे पास यहाँ पेंटिंग का कोई सामान नहीं है | मैं फिर कभी बना दूंगा |”

पर महिला जिद करने लगी कि यदि मेरा आपसे फिर कभी मिलना नहीं हुआ तो ! आप अभी ही कुछ बनाकर दीजिए |

पिकासो ने अपनी जेब से एक छोटा सा कागज का टुकड़ा निकाला और होटल रिसेप्शनिष्ट से पेन लेकर 20 सेकंड से भी कम समय में उसे कुछ बनाकर दे दिया और कहा ये लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग |
महिला बिना कुछ बोले वहां से चली गयी और सोचने लगी कि पिकासो ने उसे जल्दबाजी में कुछ भी बनाकर दे दिया है और उसे पागल बना रहे है | फिर भी उसने मार्केट में जाकर पेंटिंग की कीमत पता की, तब उसे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि वह पेंटिंग सच में मिलियन डॉलर की थी |

अब यह महिला अगले दिन फिर पिकासो से मिली और उनसे कहने लगी कि सर आपने 20 सेकंड से भी कम समय में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी तो आप मुझे भी पेंटिंग बनाना सिखा दीजिए | मैं 20 सेकंड में न सही , लेकिन शायद 10 मिनट में तो कुछ बना ही पाउंगी |

पिकासो हंसते हुए बोले, ” ये जो मैंने 20 सेकंड में पेंटिंग बनाई है इसे सीखने में मुझे 30 साल लगे है | मैंने अपने जीवन के 30 साल इसे सीखने में दिए है, तुम भी दो, सीख जाओगी |”

अब महिला के पास कोई जवाब नहीं था |

*📚शिक्षा – हमें समझना चाहिए कि सफलता तो आसानी से मिल जाती है लेकिन उसकी तैयारी में कड़ी मेहनत और अपना पूरा जीवन भी कई बार लगाना पड़ता है |

Sunday, April 19, 2020

आज का प्रेरक प्रसंग

                           *कद्दू की तीर्थयात्रा*

हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा का बहुत ही महत्त्व है। पहले के समय यात्रा में जाना बहुत कठिन था। पैदल या तो बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी। थोड़े थोड़े अंतर पर रुकना होता था। विविध प्रकार के लोगों से मिलना होता था, समाज का दर्शन होता था। विविध बोली और विविध रीति-रीवाज से परिचय होता था। कठिनाईओ से गुजरना पड़ता, अनुभव भी प्राप्त होते थे। एक बार तीर्थ यात्रा पर जाने वाले लोगों का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलने की प्रार्थना की।

तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”

लोगो ने उनके गूढार्थ पर गौर किये बिना ही वह कद्दू ले लिया और जहाँ – जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया। ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगों वह कद्दू संतजी को दिया। तुकारामजी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए।

तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूप से बनवायी गयी थी। सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।” तुकारामजी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है !”

यह सुन सभी यात्रिओ को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है। हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है।’
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Friday, April 17, 2020

आज का प्रेरक प्रसंग

                          *लालटेन की रोशनी*

एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि मैं अपने कठिनतम लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ? गुरुजी थोड़ा मुस्कुराए और कहा कि वह उसे आज रात उसके सवाल का जवाब देंगे। शिष्य हर रोज शाम को नदी से पानी भरकर लाता था, ताकि रात को उसका इस्तेमाल हो सके। लेकिन, गुरुजी ने उसे उस दिन पानी लाने से मना कर दिया। रात होने पर शिष्य ने गुरुदेव को अपना सवाल याद दिलाया तो गुरुजी ने उसे एक लालटेन दी और फिर नदी से पानी लाने को कहा।

उस दिन अमावस्या थी और शिष्य भी कभी इतनी अंधेरी रात में बाहर नहीं गया था। अतः उसने कहा कि नदी तो यहां से बहुत दूर है और इस लालटेन के प्रकाश में इतना लम्बा सफर इस अंधेरे में कैसे तय करूंगा ? आप सुबह तक प्रतीक्षा कीजिए, मैं गागर सुबह भर लाऊंगा, गुरुजी ने कहा कि हमें पानी की जरूरत अभी है तो जाओ और गागर को भरकर लाओ।

गुरुजी ने कहा कि रोशनी तेरे हाथों में है और तू अंधेरे से डर रहा है। बस, फिर क्या था शिष्य लालटेन लेकर आगे बढ़ता रहा और नदी तक पहुंच गया और गागर भरकर लौट आया। शिष्य ने कहा कि मैं गागर भरकर ले आया हूँ, अब आप मेरे सवाल का जवाब दीजिए। तब गुरुजी ने कहा कि मैंने तो सवाल का जवाब दे दिया है, लेकिन शायद तुम्हें समझ में नहीं आया।

*कहानी का सबक* - गुरुजी ने समझाया कि यह दुनिया नदी के अंधियारे किनारे जैसी है, जिसमें हर एक क्षण लालटेन की रोशनी की तरह मिला हुआ है। अगर हम उस हर एक क्षण का इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ेंगे तो आनंदपूर्वक अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे।
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Thursday, April 16, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

"इन्सान वक्त से डरता है, और वक्त पिरामिड से डरता है"

मिस्र देश में नील नदी के पश्चिमी किनारे ग़िज़ा शहर के एक तरफ पत्थरों के पिरामिडों के बीच फराहो किंग 'खुफु' का पिरामिड सदियों से वक्त से  लड़ाई लड़ रहा है। आज से लगभग 5000 साल पहले जब इंसानों ने इसे बनाया तब चाँद तारों ने इस इंसानी जज्बे को देख कर दांतों तले अंगुली दबाई होगी।

मानव सभ्यता के इतिहास में 3800 वर्ष तक यह इमारत डींगें हांकती रही कि मैं दुनियां में इंसान द्वारा बनी सबसे ऊँची चीज़ हूँ जब तक कि 1311 AD में इंग्लैंड में लिंकन गिरजाघर नहीं बन गया।

उस जमाने में लाखों टन पत्थरों को कैसे लाया, ले जाया गया, इमारत को बनाया गया, यह सब आज भी रहस्य है। बाहर तपते रेगिस्तान की गर्मी लेकिन पिरामिड्स के भीतर AC वाली ठंडक और भूलभुलैया वाली अनगिनत सुरंगें। क्या शहंशाहों ने अपनी मौत के बाद आराम फरमाने के लिए इन जगहों को बनाया? मौत के बाद आराम के लिए जिन्दगी में इतना परिश्रम?

शायद सदियों पुरानी इमारत यही सिखाती है कि दुनियां में कुछ ऐसा करो कि आपके कामों का अस्तित्व न वक्त मिटा सके न कोई माटी के बने पुतले। पास बहती नील नदी के पानी का लक्ष्य है निरन्तर बहना और अन्त में सागर में जाकर मिल जाना; सदियों से पानी ऐसा कर रहा है और सागर में उसका भी अस्तित्व अमर है।

अंगद के पैर की तरह खड़ा गिजे का पिरामिड अपनी स्थिरता की पहचान से अमर है। पिरामिड के पास शेर के शरीर का धड़ एवं इंसानी मुँह के आकार का बना 'स्फिंक्स' यह समझाता है कि परिश्रम और ताकत पशुओं से सीखो लेकिन मस्तिष्क में विवेक मनुष्य का रखो।

आसमान की तरफ आगे बढ़ता हुआ तिकोने मुँह वाला वो सबसे बड़ा पिरामिड सिखाता है जितना ऊँचा होते जाओ अपने अहम् का वजन नीचे छोड़ते जाओ। आपकी जिन्दगी में नींव कितनी मजबूत है इसी से आपके अस्तित्व तय होगा। पिरामिड के भीतर की सुरंगें आपकी जिंदगी द्वारा जिन्दगी की न खत्म होने वाली तलाश है।

बहती नदी और पत्थर को वो इंसानी पहाड़ सदियों से यह सीख दे रहा है कि परिश्रम वाली जिन्दगी वालों को ही आराम और निर्वाण वाली मौत नसीब होती है।

लेखक:

अर्जुन सिंह साँखला
प्राचार्य,
लक्की इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, जोधपुर।

Tuesday, April 14, 2020

समरसता दिवस 14 अप्रैल 2020

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का मूल नाम भीमराव था। उनके पिताश्री रामजी वल्द मालोजी सकपाल महू में ही मेजर सूबेदार के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे। अपनी सेवा के अंतिम वर्ष उन्‍होंने और उनकी धर्मपत्नी भीमाबाई ने काली पलटन स्थित जन्मस्थली स्मारक की जगह पर विद्यमान एक बैरेक में गुजारे। सन् 1891 में 14 अप्रैल के दिन जब रामजी सूबेदार अपनी ड्यूटी पर थे, 12 बजे यहीं भीमराव का जन्म हुआ। कबीर पंथी पिता और धर्मर्मपरायण माता की गोद में बालक का आरंभिक काल अनुशासित रहा।

शिक्षा

अछूत समझी जाने वाली जाति में जन्म लेने के कारण अपने स्कूली जीवन में आम्बेडकर को अनेक अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा। इन सब स्थितियों का धैर्य और वीरता से सामना करते हुए उन्होंने स्कूली शिक्षा समाप्त की। फिर कॉलेज की पढ़ाई शुरू हुई। इस बीच पिता का हाथ तंग हुआ। खर्चे की कमी हुई। एक मित्र उन्हें बड़ौदा के शासक गायकवाड़ के यहाँ ले गए। गायकवाड़ ने उनके लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था कर दी और आम्बेडकर ने अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी की। 1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद बड़ौदा महाराज की आर्थिक सहायता से वे एलिफिन्सटन कॉलेज से 1912 में ग्रेजुएट हुए।
1913 और 15 के बीच जब आम्बेडकर कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे, तब एम.ए. की परीक्षा के एक प्रश्न पत्र के बदले उन्होंने प्राचीन भारतीय व्यापार पर एक शोध प्रबन्ध लिखा था। इस में उन्होंने अन्य देशों से भारत के व्यापारिक सम्बन्धों पर विचार किया है। इन व्यापारिक सम्बन्धों की विवेचना के दौरान भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा भी बन गई है। यह शोध प्रबन्ध रचनावली के 12वें खण्ड में प्रकाशित है।

कुछ साल बड़ौदा राज्य की सेवा करने के बाद उनको गायकवाड़-स्कालरशिप प्रदान किया गया जिसके सहारे उन्होंने अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. (1915) किया। इसी क्रम में वे प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री सेलिगमैन के प्रभाव में आए। सेलिगमैन के मार्गदर्शन में आम्बेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से 1917 में पी एच. डी. की उपाधी प्राप्त कर ली। उनके शोध का विषय था -'नेशनल डेवलेपमेंट फॉर इंडिया : ए हिस्टोरिकल एंड एनालिटिकल स्टडी'। इसी वर्ष उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में दाखिला लिया लेकिन साधनाभाव में अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाए। कुछ दिनों तक वे बड़ौदा राज्य के मिलिटरी सेक्रेटरी थे। फिर वे बड़ौदा से बम्बई आ गए। कुछ दिनों तक वे सिडेनहैम कॉलेज, बम्बई में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे। डिप्रेस्ड क्लासेज कांफरेंस से भी जुड़े और सक्रिय राजनीति में भागीदारी शुरू की। कुछ समय बाद उन्होंने लंदन जाकर लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की। इस तरह विपरीत परिस्थिति में पैदा होने के बावजूद अपनी लगन और कर्मठता से उन्होंने एम.ए., पी एच. डी., एम. एस. सी., बार-एट-लॉ की डिग्रियाँ प्राप्त की। इस तरह से वे अपने युग के सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे राजनेता एवं विचारक थे। उनको आधुनिक पश्चिमी समाजों की संरचना की माज-विज्ञान, अर्थशास्त्र एवं क़ानूनी दृष्टि से व्यवस्थित ज्ञान था। अछूतों के जीवन से उन्हें गहरी सहानुभूति थी। उनके साथ जो भेदभाव बरता जाता था, उसे दूर करने के लिए उन्होंने आन्दोलन किया और उन्हें संगठित किया।

Saturday, April 11, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*



          !! *ईमानदारी ही महानता है* !!
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मगध साम्राज्य में आचार्य चाणक्य की बुद्धि और सूझबूझ से हर कोई प्रभावित था। इतने बड़े प्रांत का संचालक होने के बाद भी चाणक्य साधारण जीवन जीते हुए झोपड़ी में रहते थे। एक बार एक विदेशी यात्री चाणक्य की प्रशंसा सुनकर उनसे मिलने आ पहुंचा। सांझ ढल चुकी थी और चाणक्य लेखन कार्य कर रहे थे। वहां तेल का एक दीपक जल रहा था। 

चाणक्य ने आगंतुक को आसान पर बैठने का अनुरोध किया। फिर वहां जल रहे दीपक को बुझा कर अन्दर गए और दूसरा दीपक को जला कर ले आए। उनके ऐसा करने पर विदेशी व्यक्ति समझ नहीं सका कि जलते दीपक को बुझाकर , बुझे हुए दूसरे दीपक को जलाना, कैसी बुद्धिमानी हो सकती है ? उसने संकोच करते हुए चाणक्य से पूछा - यह क्या खेल है ? जलते दीपक को बुझाना और बुझे दीपक को जलाना ! 

जला था तो बुझाया ही क्यों और बुझाया तो जलाया ही क्यों ? रहस्य क्या है? चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा इतनी देर से मैं अपना निजी कार्य कर रहा था, इसलिए मेरे अर्जित किए धन से खरीदे तेल से यह दीपक जल रहा था, अब आप आए है तो मुझे राज्य कार्य में लगना होगा, इसलिए यह दीपक जलाया है क्योंकि इसमें राजकोष से मिले धन का तेल है। आगंतुक चाणक्य की ईमानदारी देख बड़ा प्रभावित हुआ।


*कहानी का सबक* - हम चाहे कितने भी प्रभावशाली क्यों न बन जाएं, ईमानदारी का एक गुण हमेशा काम आता है और इसी से व्यक्ति का पूरा चरित्र बनता है।

Monday, April 6, 2020

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