सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखे, सपने वो है जो आपको नींद ही नहीं आने दे।– अब्दुल कलाम
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Tuesday, November 24, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

 एक अमीर सेठ के यहाँ एक नौकर काम करता था, अमीर सेठ अपने नौकर से तो बहुत खुश था, लेकिन जब भी कोई कटु अनुभव होता तो वह भगवान को अनाप शनाप कहता और बहुत कोसता था।एक दिन वह अमीर सेठ ककड़ी खा रहा था, संयोग से वह ककड़ी कच्ची और कड़वी थी। सेठ ने वह ककड़ी अपने नौकर को दे दी। नौकर ने उसे बड़े चाव से खाया जैसे वह बहुत स्वादिष्ट हो।अमीर सेठ ने पूछा: ककड़ी तो बहुत कड़वी थी, भला तुम ऐसे कैसे खा गये?नौकर बोला: आप मेरे मालिक हैं, रोज ही स्वादिष्ट भोजन देते हैं, अगर एक दिन कुछ बेस्वाद या कड़वा भी दे दिया तो उसे स्वीकार करने में भला क्या हर्ज है ?

अमीर सेठ अपनी भूल समझ गया, अगर ईश्वर ने इतनी सुख-सम्पदाएँ दी हैं और कभी कोई कटु अनुदान या सामान्य मुसीबत दे भी दें तो उसकी सद्भावना पर संदेह करना ठीक नहीं।

असल में यदि हम समझ सकें तो जीवन में जो कुछ भी होता है, सब ईश्वर की दया ही है। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।

Saturday, November 14, 2020

बाल दिवस


 बाल दिवस 14 नवंबर को पूरे देश में हर साल की तरह बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाएगा। पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 में इलाहाबाद में हुआ था। हर साल उनके जन्मदिन को बाल दिवस (Children's Day) के रूप में मनाया जाता है। जवाहर लाल नेहरू को बच्चों से बहुत प्यार था। यही वजह है कि बच्‍चे आज भी उन्‍हें चाचा नेहरू कहकर बुलाते हैं। 

Wednesday, November 11, 2020

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस


 यह दिवस भारत सरकार भारत के पहले शिक्षा मंत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की याद में हर 11 नवंबर को मनाया जाता है। वैधानिक रूप से इसका प्रारम्भ 11 नवम्बर 2008 से किया गया है। मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को हुआ था। वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे।

Friday, October 30, 2020

सरदार वल्लभ भाई पटेल


 

पद बहाल
15 अगस्त 1947 – 15 दिसम्बर 1950
प्रधानमंत्रीजवाहरलाल नेहरु
पूर्वा धिकारीपद सृजन
उत्तरा धिकारीमोरारजी देसाई

पद बहाल
15 अगस्त 1947 – 15 दिसम्बर 1950
प्रधानमंत्रीजवाहरलाल नेहरु
पूर्वा धिकारीपद सृजन
उत्तरा धिकारीचक्रवर्ती राजगोपालाचारी

जन्म31 अक्टूबर 1875
नडियादबंबई प्रेसीडेंसीब्रिटिश भारत
मृत्यु15 दिसम्बर 1950 (उम्र 75)
बॉम्बेबॉम्बे राज्यभारत
राष्ट्रीयताभारतीय
राजनीतिक दलभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
बच्चेमणिबेन पटेलदह्याभाई पटेल
शैक्षिक सम्बद्धतामिडल टेम्पल
पेशावकालत, राजनीति

सतर्कता जागरूक सप्ताह

 

सतर्कता जागरूकता सप्ताह के महत्वपूर्ण बिंदु :
:white_check_mark:क्यों मनाया जाता है ?
:arrow_right:प्रत्येक वर्ष सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्म दिवस 31 अक्टूबर को ध्यान में रखकर सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।
:arrow_right:इस साल 2020 में, सतर्कता जागरूकता सप्ताह 27 अक्टूबर से 2 नवंबर, 2020 तक “सतर्क भारत, समृद्ध भारत - Satark Bharat, Samriddh Bharat (Vigilant India, Prosperous India)” विषय के साथ मनाया जा रहा है।
:arrow_right:वेबसाइट पर अर्थगर्भित विषयों को डालने तथा प्रस्तावित विषय पर मुख्य सतर्कता अधिकारियों की राय प्राप्त करने के बाद इस वर्ष इस विषय को चुना गया है।
:arrow_right:केन्द्रीय सतर्कता आयोग 27 अक्टूबर से 2 नवंबर, 2020 तक सतर्कता जागरूकता सप्ताह का अनुपालन कर रहा है।
:arrow_right:नागरिक भागीदारी के माध्यम से सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी तथा सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देने के लिए, यह जागरूकता सप्ताह हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है ।
:arrow_right:आयोग का मानना है कि राष्ट्र की प्रगति में भ्रष्टाचार एक मुख्य बाधा है । समाज के सभी वर्गों को हमारे राष्ट्रीय जीवन में ईमानदारी बनाए रखने के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है।

Monday, October 26, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

!! असली शिक्षा !!*

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एक बड़ी सी गाड़ी आकर बाजार में रूकी, कार में ही मोबाईल से बातें करते हुए महिला ने अपनी बच्ची से कहा, जा उस बुढिया से पूछ सब्जी कैंसे दी, बच्ची कार से उतरतें ही- अरें बुढिया ! यें सब्जी कैंसे दी?

40 रूपयें किलो, बेबी जी...

सब्जी लेते ही उस बच्ची ने सौ रूपयें का नोट उस सब्जी वाली को फेंक कर दिया और आकर कार पर बैठ गयी, कार जाने लगी तभी अचानक किसी ने कार के सीसे पर दस्तक दी, एक छोटी सी बच्ची जो हाथ में 60 रूपयें कार में बैठी उस औरत को देते हुए, बोलती हैं आंटी जी यें आपके सब्जी के बचें 60 रूपयें हैं, आपकी बेटी भूल आयी हैं। कार में बैठी औरत ने कहा तुम रख लों, उस बच्ची ने बड़ी ही मिठी और सभ्यता से कहा- नहीं आंटी जी हमारें जितने पैंसे बनते थें हमने ले लियें, हम इसे नहीं रख सकतें, मैं आपकी आभारी हूं, आप हमारी दुकान पर आए और आशा करती हूं कि सब्जी आपको अच्छी लगें, जिससे आप हमारें ही दुकान पर हमेशा आए। उस लड़की ने हाथ जोड़े और अपनी दुकान लौट गयी...

कार में बैठी महिला उस लड़की से बहुत प्रभावित हुई और कार से उतर कर फिर सब्जी की दुकान पर जाने लगी, जैसें ही वहाँ पास गयी, सब्जी वाली अपनी बच्ची को पूछते हुयें, तुमने तमीज से बात की ना, कोई शिकायत का मौका तो नहीं दिया ना..?

बच्ची ने कहा, हाँ माँ मुझे आपकी सिखाई हर बात याद है, कभी किसी बड़े का अपमान मत करो, उनसे सभ्यता से बात करो, उनकी कद्र करो, क्यूंकि बड़े-बुजर्ग बड़े ही होते हैं, मुझे आपकी सारी बात याद है और मैं सदैव इन बातों का स्मरण रखूंगी। बच्ची ने फिर कहा, अच्छा माँ अब मैं स्कूल चलती हूं, शाम में स्कूल से छुट्टी होते ही, दुकान पर आ जाऊंगी...

कार वाली महिला शर्म से पानी पानी थी, क्यूंकि एक सब्जी वाली अपनी बेटी को इंसानियत और बड़ों से बात करने के शिष्टाचार का पाठ सीखा रही थी और वह महिला अपनी बेटी को छोटा-बड़ा, ऊंच-नीच का मन में बीज बो रही थी..!!

शिक्षा:-

सबसे अच्छा तो वो कहलाता है जो आसमान पर भी रहता है और जमींन से भी जुड़ा रहता है। बस इंसानियत, भाईचारें, सभ्यता, आचरण, वाणी में मिठास, सब की इज्जत करने की सीख दीजिए अपने बच्चों को, क्यूंकि अब बस यहीं पढ़ाई है जो आने वाले समय में बहुत ही ज्यादा मुश्किल होगी इसे पढ़ने, इसे याद रखने, इसे ग्रहण करने में और जीवन को उपयोगी बनानें में !!

*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।

Sunday, October 25, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

*स्कूल टीचर ने बोर्ड पर लिखा:*

9×1=9

9×2=18

9×3=27

9×4=36

9×5=45

9×6=54

9×7=63

9×8=72

9×9=81

9×10=89

*लिखने के बाद बच्चों को देखा तो बच्चे शिक्षक पर हंस रहे थे, क्योंकि आखिरी लाइन गलत थी।*

*फिर शिक्षक ने कहा:*

*"मैंने आखिरी लाइन किसी उद्देश्य से गलत लिखी है क्यूंकि मैं तुम सभी को कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण सिखाना चाहता हूं।*

*दुनिया तुम्हारे साथ ऐसा ही व्यवहार करेगी..!*

*तुम देख सकते हो कि मैंने ऊपर 9 बार सही लिखा है पर किसी ने भी मेरी तारीफ नहीं की..??*

*पर मेरी सिर्फ एक ही गलती पर तुम लोग हंसे और मुझे क्रिटिसाइज भी किया।"*

*तो यही नसीहत है :*

*कि दुनिया कभी आपके लाख अच्छे कार्यों को एप्रीशिएट (appreciate) करे या न करे , परन्तु आपके द्वारा की गई एक गलती को क्रिटिसाइज (criticize) जरूर करेगी।*

*ये एक कटु सत्य है*

*स्वस्थ एवं सुरक्षित रहें।*



        

Monday, October 5, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

   *!! महिला के शुभ कदम !!*

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एक आदमी ने दुकानदार से पूछा: केले और सेव फल क्या भाव लगाऐ है? दुकानदार: केले 20 रु. दर्जन और सेव 100 रु. किलो

उसी समय एक गरीब सी औरत दुकान में आयी और बोली मुझे एक किलो सेव और एक दर्जन केले चाहिए, क्या भाव है? भैया दुकानदार: केले 5 रु दर्जन और सेब 25 रु किलो। औरत ने कहा: जल्दी से दे दीजिए। दुकान में पहले से मौजूद ग्राहक ने खा जाने वाली निगाहों से घूरकर दुकानदार को देखा, इससे पहले कि वो कुछ कहता, दुकानदार ने ग्राहक को इशारा करते हुए थोड़ा सा इंतजार करने को कहा। औरत खुशी-खुशी खरीदारी करके दुकान से निकलते हुए बड़बड़ाई हे भगवान! तेरा लाख-लाख शुक्र है, मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत खुश होंगे।

औरत के जाने के बाद, दुकानदार ने पहले से मौजूद ग्राहक की तरफ देखते हुए कहा: ईश्वर गवाह है, भाई साहब मैंने आपको कोई धोखा देने की कोशिश नहीं की। यह विधवा महिला है, जो चार अनाथ बच्चों की मां है। किसी से भी किसी तरह की मदद लेने को तैयार नहीं है। मैंने कई बार कोशिश की है और हर बार नाकामी मिली है। तब मुझे यही तरकीब सूझी है कि जब कभी ये आए तो, मैं उसे कम से कम दाम लगाकर चीज़े दे दूँ। मैं यह चाहता हूँ कि उसका भ्रम बना रहे और उसे लगे कि वह किसी की मोहताज नहीं है।

मैं इस तरह भगवान के बन्दों की पूजा कर लेता हूँ। थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला: यह औरत हफ्ते में एक बार आती है। भगवान गवाह है, जिस दिन यह आ जाती है उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और उस दिन परमात्मा मुझ पर मेहरबान हो जाता है।

ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए, उसने आगे बढ़कर दुकानदार को गले लगा लिया और बिना किसी शिकायत के अपना सौदा खरीदकर खुशी-खुशी चला गया। खुशी अगर बांटना चाहो तो तरीका भी मिल जाता है।

*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

Sunday, September 20, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

 *!! क्रोध पर विजय !!*

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बहुत प्राचीन बात है। किसी गाँव में एक बुर्जुग महात्मा रहते थे। दूर-दूर से लोग शिक्षा गृहण करने के उद्देश्य से अपने बच्चों को उनके आश्रम में भेजते थे। एक दिन महात्मा जी के पास कमल नाम का एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आया।
‘गुरु जी मुझे अपने श्रीचरणों में जगह दे दीजिए। अब मेरी कोई कामना बाकी नहीं रही है। मैं आश्रम में रहकर आपके आज्ञानुसार समाज को अभी तक प्राप्त किया हुआ ज्ञान वितरित करना चाहता हूँ।‘ पारखी वृद्ध महात्मा ने एकदम समझ लिया कि यह व्यक्ति काबिल है, इसकी कामना सच्ची है और यह समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाने के लिए कृतसंकल्पित है।
कमल उनके चरणों में गिरकर प्रार्थना किये जा रहा था- गुरु जी! मुझे अपने श्रीचरणों में स्थान दें।
महात्मा जी ने कहा-‘पुत्र! आश्रम की परम्परा है कि तुम स्नान करके पवित्र हो और भगवान के आगे संकल्प धारण करो कि अपना कृतव्य सही तरीके से निभाओगे। अतः इस कार्य के लिए तुम कल प्रातः स्नान करके आश्रम आ जाना।’
उसके जाते ही वृद्ध महात्मा जी ने साफ-सफाई का कार्य करने वाली महिला को अपने पास बुलाया और कहा ‘कल सुबह यह नया शिक्षक आयेगा। जैसे ही यह आश्रम के नजदीक आये, तुम इस प्रकार से झाड़ू लगाना कि उसके चेहरे पर धूल गिर जाए। लेकिन यह कार्य थोड़ा सावधानी से करना। वह तुम पर हाथ भी छोड़ सकता है। महिला महात्मा जी की बहुत सम्मान करती थी। उसने उनकी आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अति प्रसन्न मुद्रा में कमल नहा-धोकर इठलाता हुआ आश्रम आने लगा। जैसे ही वह नजदीक पहुँचा, महिला ने तेजी से झाड़ू लगाना शुरू कर दिया। कमल के पूरे चेहरे में धूल चली गई। उसके क्रोध की सीमा न रही। पास पड़े पत्थर को उठाकर वह महिला को मारने के लिए दौड़ा। महिला पहले ही सावधान थी। वह झाड़ू फैंक-फांक के वहाँ से भाग खड़ी हुई। अधेड़ के मुख में जो आया बकता चला गया।
कमल वापिस घर गया और दुबारा स्नान करके महात्मा के पास लौटा।
महात्मा जी ने कहा- ‘अभी तो तुम जानवरों के समान लडने के लिए दौड़ते-चिल्लाते हो। तुमसे अभी यहाँ शिक्षण कार्य नहीं होगा। तुम एक वर्ष के बाद आना तब तक जो कार्य करते हो वही करते रहो।’
कमल की इच्छा सच्ची थी। उसकी महात्मा में श्रद्धा भी सच्ची थी। वर्ष पूरा होते ही वह फिर महात्मा जी के समीप उपस्थित हुआ।
महात्मा जी ने आदेश दिया- ‘पुत्र तुम कल स्नान करके प्रातः आना।’
कमल के जाते ही महात्मा जी ने सफाई कर्मचारी को बुला कर कहा- ‘वह फिर आ रहा है। इस बार मार्ग में झाड़ू इस तरह से लगाना कि धूल के साथ-साथ उस पर झाड़ू की हल्की सी चोट भी लग जाए। डरना मत, वह तुम्हें मारेगा नहीं। कुछ भी बोले तो चुपचाप सुनते रहना।’
अगले दिन स्नान-ध्यान करके वह व्यक्ति जैसे ही द्वार तक पहुंचा। महिला झाड़ू लगाते हुए पहुंच गयी। महिला ने आदेशानुसार जानबूझकर झाड़ू उस पर इस प्रकार से छुआ कि कपड़े भी गंदे हो गये।
कमल को बहुत क्रोध आया, पर झगड़ने की बात उसके मन में नहीं आयी। वह केवल महिला को गालियाँ बक कर फिर स्नान करने घर लौट गया।
जब वह महात्मा जी के पास वापिस पहुंचा, संत ने कहा-‘तुम्हारी काबिलियत में मुझे संदेह है। एक वर्ष के बाद यहाँ आना।’
एक वर्ष और बीत गया। कमल महात्मा जी के पास आया। उसे पूर्व के भांति स्नान-ध्यान करके आने की आज्ञा मिली।
महात्मा जी ने उसके जाते ही उसी महिला को फिर बुलाया- ‘इस बार सुबह जब वह आये तो तुम इस बार अपनी कचड़े की टोकरी उस पर उड़ेल देना।’
साफ-सफाई करने वाली महिला डर गयी।
महिला ने कहा- ‘वह तो अति कठोर स्वभाव का है। ऐसा करने पर तो वह अत्यंत क्रोधित होगा और मार-पीट पर उतर जायेगा।’
महात्मा जी ने उसे आश्वासन दिया- ‘चिन्ता मत करो। इस बार वह कुछ नहीं कहेगा। इसलिए तुम्हें भागने की आवश्यकता नहीं है।’
सुबह जैसे ही कमल आश्रम पहुँचा। महिला ने अनजान बनकर पूरा कूड़ा-कचरा उस पर उड़ेल दिया।
पर यह क्या! इस बार न तो वह गुस्सा हुआ और न ही मार-पीट के लिए दौड़ा।
कमल ने कहा- ‘माता! आप मेरी गुरु हैं। ’
कमल ने महिला के सामने अपना मस्तक झुका कर कहा... ‘आपने मुझ मूर्ख-अभिमानी पर अति कृपा की है।
आपके सहयोग से मैंने अपने बड़प्पन के अहंकार और क्रोध-रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त की है।
वह दुबारा घर गया। स्नान करके आश्रम में उपस्थित हुआ।
इस बार महात्मा जी ने उसे गले लगा लिया और बोले- ‘पुत्र! तुमने अपने क्रोध पर काबू पा लिया है अतः अब तुम आश्रम में कार्य करने के सच्चे अधिकारी हो।

*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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Tuesday, September 8, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

*!! एक अनोखा मालिक !!*
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जाकिर हुसैन के घर पर एक अधेड़ उम्र का नौकर था। वह रोज देर से सोकर उठता था। उसकी इस आदत से घर वाले उससे परेशान थे। उन्होंने उस नौकर की शिकायत जाकिर हुसैन साहब से कर दी और उसे बाहर करने को कहा। इसके जवाब में जाकिर साहब ने केवल यही कहा-‘उसे समझाओ।’ सबने उसे समझाया, पर इसके बावजूद उस पर कोई असर न हुआ। ‘अब आप ही समझाकर देखिए उस नौकर को!’ घरवालों ने जाकिर साहब से निवेदन किया।
अगले दिन सवेरे जाकिर साहब उठे। एक लोटा पानी भरकर उस नौकर के सिर के पास जाकर खड़े हो गए। नौकर अभी तक गहरी नींद में ही था। वे उसे धीरे से उठाते हुए बोले-‘उठिए मालिक! जागिए! सवेरा हो गया। मुंह हाथ धो लीजिए। मैं अभी आपके लिए चाय और स्नान के पानी का इंतजाम करता हूं।’ इतना कहकर वे चले गए। इधर नौकर परेशान कि ये हो क्या रहा है, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। वह अभी बैठा-बैठा यह सोच ही रहा था।
तभी जाकिर साहब चाय लेकर आते दिखाई दिए। वे आकर बोले-‘मालिक, लीजिए चाय पीकर स्नान करने चलिए।’ नौकर बहुत घबराया। क्षमा मांगते हुए बोला-‘हुजूर! आज के बाद से मेरे देर तक सोकर उठने की शिकायत किसी को नहीं होगी।’ इस पर जाकिर साहब मुस्करा दिए। अगले दिन सभी घरवालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि वह नौकर सबसे पहले उठकर घर का सारा काम कर रहा था। नौकर डॉक्टर जाकिर हुसैन की विनयशीलता से अभिभूत हो गया। 
शिक्षा:-
जाकिर साहब ने अपने घर के लोगों को समझाया- व्यक्ति के आचरण में निहित विनम्रता का कमाल यही है कि वह सामने वाले व्यक्ति पर बेहद सरलता के साथ अपना प्रभाव डाल देता है। समाज में अपने व्यवहार द्वारा प्रभाव पैदा करना है तो जीवन में विनम्रता को स्थान दें।

Monday, September 7, 2020

Top 10 scorer for Quiz On Teachers Day 2020

1.  Satyam                               6.Surya Pratap
2.  Piyush Kumar Sharma  7.Kartikay
3.  Satyam Rastogi                8. Swapnil
4.  Avinav Katiyar.               9. Shourya Pratap Singh
5.  Yahi Shrivastava.            10. Anupam

Friday, September 4, 2020

सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन

शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के इस समाज को तराशते हैं। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है। शिक्षकों की इसी महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की, जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे।

अपने इस महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में शिक्षक दिवस मनाकर डॉ.राधाकृष्णन के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। 

 जीवन परिचय –  5 सितंबर 1888 को चेन्नई से लगभग 200 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित एक छोटे से कस्बे तिरुताणी में डॉक्टर राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वी. रामास्वामी और माता का नाम श्रीमती सीता झा था। रामास्वामी एक गरीब ब्राह्मण थे और तिरुताणी कस्बे के जमींदार के यहां एक साधारण कर्मचारी के समान कार्य करते थे।  डॉक्टर राधाकृष्णन अपने पिता की दूसरी संतान थे। उनके चार भाई और एक छोटी बहन थी छः बहन-भाईयों और दो माता-पिता को मिलाकर आठ सदस्यों के इस परिवार की आय अत्यंत सीमित थी। इस सीमित आय में भी डॉक्टर राधाकृष्णन ने सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। उन्होंने न केवल महान शिक्षाविद के रूप में ख्याति प्राप्त की,बल्कि देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया। स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शुरुआती जीवन तिरुतनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही बीता।  यद्यपि इनके पिता धार्मिक विचारों वाले इंसान थे लेकिन फिर भी उन्होंने राधाकृष्णन को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल,तिरुपति में दाखिल कराया। इसके बाद उन्होंने वेल्लूर और मद्रास कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त की। वह शुरू से ही एक मेधावी छात्र थे।  अपने विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने बाइबल के महत्वपूर्ण अंश याद कर लिए थे,जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान भी प्रदान किया गया था। उन्होंने वीर सावरकर और विवेकानंद के आदर्शों का भी गहन अध्ययन कर लिया था। सन 1902 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की जिसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की गई।  कला संकाय में स्नातक की परीक्षा में वह प्रथम आए। इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया और जल्द ही मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। डॉ.राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। 

Tuesday, September 1, 2020

Monday, August 31, 2020

Quiz Competition Result for Class VIII

Ist Position.                        Adwait Bhardwaj
IInd Position                       Aditya
IIIrd Position                       Aryan Singh
IVth Position                       Mohd Shan
Vth Position                        Rida Batool

Saturday, August 29, 2020

मेजर ध्यानचंद

ध्यानचंद (जन्म 29 अगस्त 1905- मृत्यु 3 दिसंबर 1979) एक भारतीय फील्ड हॉकी प्लेयर थे। जिन्हें बड़े पैमाने पर हॉकी का सबसे बेहतरीन खिलाड़ी माना जाता है। ध्यानचंद के गोल करने की क्षमता कमाल की थी। उनके खेलने के दौरान भारत ने हॉकी में तीन गोल्ड मैडल (1928, 1932 और 1936) ओलंपिक में जीते थे। यही वह समय था जब भारत हॉकी में सबसे अच्छी टीम था। 
हॉकी बॉल के साथ अपने कंट्रोले के लिए ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है। ध्यानचंद ने आखिरी अंतराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला। अपने अंतराष्ट्रीय करियर के दौरान वे 400 से अधिक गोल कर चुके थे। भारतीय सरकार ने अब तीसरा और उनके दौर में दूसरे स्थान का नागरिक सम्मान पद्मभूषण प्रदान 1956 में किया। उनका जन्मदिन भारत में नेशनल स्पोर्ट्स डे के तौर पर 29 अगस्त को मनाया जाता है। 
 
बचपन 
 
ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त को इलाहाबाद (उत्तरप्रदेश) में हुआ। राजपूत परिवार में जन्में ध्यानचंद रूपसिंह नाम के हॉकी खिलाड़ी के बड़े  भाई थे। उनके पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे और आर्मी के लिए हॉकी खेलते थे। ध्यानचंद के एक और भाई का नाम मूलसिंह था।  उनके पिता के बार बार होने वाले ट्रांस्फर के चलते ध्यानचंद को कक्षा छह के बाद पढाई छोड़नी पड़ी। उनका परिवार आखिर में उत्तरप्रदेश के झांसी में ही बस गया। 
 
करियर 
 
बचपन में ध्यानचंद का हॉकी पर कोई ध्यान नहीं था और उन्हें पहलवानी पसंद थी। ध्यानचंद ने भारतीय आर्मी ज्वाइन की उस समय उनकी उम्र 16 साल थी। वह रात में खेल की प्रेक्टिस करते थे और चांद के निकलने का इंतजार भी क्योंकि चांद निकलने के बाद ही उन्हें दिखाई देने लगता था। उस दौर में बाहर लाइट नहीं हुआ करती थी। चांद के इंतजार के कारण ही उनके दोस्त उन्हें चंद पुकारने लगे और उनका नाम ध्यानचंद पड़ा।  > 1922 से 1926 के बीच ध्यानचंद ने सिर्फ आर्मी हॉकी और रेजिमेंट गेम्स खेले। बाद में उन्हें इंडियन आर्मी टीम के लिए चुन लिया गया जिसे न्यूजीलैंड जाकर खेलना था। इस टीम ने 18 मैच जीते, 2 ड्रा हो गए और एक मैच टीम हार गई। देखने आए सभी दर्शक टीम के प्रशंसक हो गए। भारत लौटते ही ध्यानचंद को लांस नायक बना दिया गया था। 
 
ओलंपिक में बेहतरीन टीम भेजने के बाद, नई बनी हुई इंडियन हॉकी फेडरेशन ने 1928 के एमस्टरडैम ओलंपिक के लिए बढिया टीम तैयार करना शुरू कर दिया। 1925 में कई राज्यों के बीच टूर्नामेंट रखा गया। पांच टीमों ने इसमें भाग लिया जिसमें आर्मी ने ध्यानचंद को युनाइटेड प्रोविंस नाम की टीम में खेलने की इजाजत दी।  
 
एमस्टरडैम में हुए ओलंपिक में 1928 में भारतीय टीम के पहले ही मैच में ध्यानचंद ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ 3 गोल दागे। अगले दिन भारत ने बैल्जियम को 9-0 से हराया हालांकि ध्यानचंद ने सिर्फ एक गोल दागा था। अगला मैच भारत ने डेनमार्क के खिलाफ जीता जिसमें कुल 5 में से 3 गोल ध्यानचंद ने किए थे। दो दिन बाद, ध्यानचंद ने स्विट्जर्लैंड के खिलाफ 4 गोल किए और भारतीय टीम को जीत दिलाई।
 
हॉकी के जादूगर  
 
 
फायनल मैच 26 मई को नीदर्लैंड के खिलाफ था। भारतीय टीम के अच्छे खिलाड़ी फिरोज खान, अली शौकत, खेर सिंह बीमार थे। यहां तक की ध्यानचंद का भी स्वास्थ्य खराब था। इसके बावजूद भारत यह मैच 3-0 से जीतने में सफल रही। इसमें ध्यानचंद ने 2 गोल किए। इस तरह भारत ने हॉकी का पहला गोल्ड मैडल जीता। ध्यानचंद ओलंपिक में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी थे।
 
एक अखबार ने ध्यानचंद के लिए लिखा, 'ये हॉकी का मैच नहीं था बल्कि जादू था। ध्यानचंद असलियत में हॉकी के जादूगर हैं।' 
 
आखिरी दिनों में 
 
1951 में कैप्टन ध्यानचंद के सम्मान में नेशनल स्टेडियम में ध्यानचंद टूर्नामेंट रखा गया। कई सफल टूर्नामेंटों में हिस्सा लेने के बाद, 1956 में 51 वर्ष की उम्र में कैप्टन ध्यानचंद आर्मी से मेजर की पोस्ट से रिटार्यड हो गए। भारत सरकार ने उन्हें इसी वर्ष पद्मभूषण से सम्मानित किया। 
 
रिटायर्मेंट के बाद, राजस्थान के माउंटआबू में वह हॉकी कोच के रूप में कार्य करते रहे। इसके बाद पाटियाला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में वह चीफ हॉकी कोच बन गए। यहां कई साल तक वे इस पद पर रहे। अपने जीवन के आखिरी दिनों में ध्यानचंद अपने गृहनगर झांसी (उत्तरप्रदेश) में रहे। मेजर ध्यान चंद का 3 दिसंबर 1979 में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस दिल्ली में स्वर्गवास हो गया। उनकी रेजीमेंट पंजाब रेजीमेंट ने पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया।  

Thursday, August 27, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

   *!! हर व्यक्ति का महत्व !!*

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एक बार एक विद्यालय में परीक्षा चल रही थी। सभी बच्चे अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके आये थे। कक्षा का सबसे ज्यादा पढ़ने वाला और होशियार लड़का अपने पेपर की तैयारी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त था। उसको सभी प्रश्नों के उत्तर आते थे लेकिन जब उसने अंतिम प्रशन देखा तो वह चिन्तित हो गया। सबसे अंतिम प्रशन में पूछा गया था कि “विद्यालय में ऐसा कौन व्यक्ति है जो हमेशा सबसे पहले आता है? वह जो भी है, उसका नाम बताइए।”

परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के ध्यान में एक महिला आ रही थी। वही महिला जो सबसे पहले स्कूल में आकर स्कूल की साफ सफाई करती। पतली, सावलें रंग की और लम्बे कद की उस महिला की उम्र करीब 50 वर्ष के आसपास थी। ये चेहरा वहां परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के आगे घूम रहा था। लेकिन उस महिला का नाम कोई नहीं जानता था। इस सवाल के जवाब के रूप में कुछ बच्चों ने उसका रंग-रूप लिखा तो कुछ ने इस सवाल को ही छोड़ दिया। 

परीक्षा समाप्त हुई और सभी बच्चों ने अपने अध्यापक से सवाल किया कि “इस महिला का हमारी पढ़ाई से क्या सम्बन्ध है। इस सवाल का अध्यापक जी ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया “ये सवाल हमने इसलिए पूछा था कि आपको यह अहसास हो जाये कि आपके आसपास ऐसे कई लोग हैं जो महत्वपूर्ण कामों में लगे हुए है और आप उन्हें जानते तक नहीं। इसका मतलब आप जागरूक नहीं है।

शिक्षा:-

हमारे आसपास की हर चीज, व्यक्ति का विशेष महत्व होता है, वह खास होता है। किसी को भी नजरअंदाज नहीं करें।

Sunday, August 23, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

                                                                      *!! दान का महत्व !!*

एक बहुत प्रसिद्ध संत थे जिन्होंने समाज कल्याण के लिए एक मिशन शुरू किया। जिसे आगे बढ़ाने के लिए उन्हें तन मन धन तीनों की ही आवश्यक्ता थी। इस कार्य में उनके शिष्यों ने तन मन से भाग लिया और इन कार्यकर्ताओं ने धन के लिए दानियों को खोजना शुरू किया।
एक दिन, एक शिष्य कलकत्ता पहुँचा। जहाँ उसने एक दानवीर सेठ का नाम सुना। यह जान कर उस शिष्य ने सोचा कि इन्हें गुरूजी से मिलवाना उचित होगा, हो सकता है यह हमारे समाज कल्याण के कार्य में दान दे।
इस कारण शिष्य सेठ जी को गुरु जी से मिलवाने ले गए। गुरूजी से मिल कर सेठ जी ने कहा – हे महंत जी आपके इस समाज कल्याण में, मैं अपना योगदान देना चाहता हूँ पर मेरी एक मंशा है जो आपको स्वीकार करनी होगी। आपके इस कार्य के लिए मैं भवन निर्माण करवाना चाहता हूँ और प्रत्येक कमरे के आगे मैं अपने परिजनों का नाम लिखवाना चाहता हूँ । इस हेतु मैं दान की राशि एवं नामों की सूचि संग लाया हूँ और यह कह कर सेठ जी दान गुरु जी के सामने रखते हैं।

गुरु जी थोड़े तीखे स्वर में दान वापस लौटा देते हैं और अपने शिष्य को डाटते हुए कहते हैं कि- हे अज्ञानी! तुम किसे साथ ले आये हो, ये तो अपनों के नाम का कब्रिस्तान बनाना चाहते हैं। इन्हें तो दान और मेरे मिशन दोनों का ही महत्व समझ नहीं आया।
यह देख सेठ जी हैरान थे क्यूंकि उन्हें इस तरह से दान लौटा देने वाले संत नहीं मिले थे। इस घटना से सेठ जी को दान का महत्व समझ आया। कुछ दिनों बाद आश्रम आकार उन्होंने श्रध्दा पूर्वक विनय किया और निस्वार्थ भाव दान किया तब उन्हें जो आतंरिक सुख प्राप्त हुआ वो कभी पहले किसी भी दान से नहीं हुआ था।

*सीख/शिक्षा:-*
दान का स्वरूप दिखावा नहीं होता। जब तक निःस्वार्थ भाव से दान नहीं दिया जाता तब तक वह स्वीकार्य नहीं होता और दानी को आत्म शांति अनुभव नहीं होती। किसी की मदद करके भूल जाना ही दानी की पहचान है जो इस कार्य को उपकार मानता है, असल में वो दानी नहीं हैं ना उसे दान का अर्थ पता हैं।

Top 10 scorer for Independence Day Quiz

 1. Vagish Kumar.                                                6. Vedant Saxena

2. Shashank.                                                        7. Mohd. Shan

3. Ananya Bajpai.                                                 8. Mukul Raj Gangwar

4. Syed Sabir Ahmed.                                          9. Saksham

5. Shorya Pratap Singh.                                      10. Akshat Saxena