सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखे, सपने वो है जो आपको नींद ही नहीं आने दे।– अब्दुल कलाम
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Tuesday, September 8, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

*!! एक अनोखा मालिक !!*
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जाकिर हुसैन के घर पर एक अधेड़ उम्र का नौकर था। वह रोज देर से सोकर उठता था। उसकी इस आदत से घर वाले उससे परेशान थे। उन्होंने उस नौकर की शिकायत जाकिर हुसैन साहब से कर दी और उसे बाहर करने को कहा। इसके जवाब में जाकिर साहब ने केवल यही कहा-‘उसे समझाओ।’ सबने उसे समझाया, पर इसके बावजूद उस पर कोई असर न हुआ। ‘अब आप ही समझाकर देखिए उस नौकर को!’ घरवालों ने जाकिर साहब से निवेदन किया।
अगले दिन सवेरे जाकिर साहब उठे। एक लोटा पानी भरकर उस नौकर के सिर के पास जाकर खड़े हो गए। नौकर अभी तक गहरी नींद में ही था। वे उसे धीरे से उठाते हुए बोले-‘उठिए मालिक! जागिए! सवेरा हो गया। मुंह हाथ धो लीजिए। मैं अभी आपके लिए चाय और स्नान के पानी का इंतजाम करता हूं।’ इतना कहकर वे चले गए। इधर नौकर परेशान कि ये हो क्या रहा है, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। वह अभी बैठा-बैठा यह सोच ही रहा था।
तभी जाकिर साहब चाय लेकर आते दिखाई दिए। वे आकर बोले-‘मालिक, लीजिए चाय पीकर स्नान करने चलिए।’ नौकर बहुत घबराया। क्षमा मांगते हुए बोला-‘हुजूर! आज के बाद से मेरे देर तक सोकर उठने की शिकायत किसी को नहीं होगी।’ इस पर जाकिर साहब मुस्करा दिए। अगले दिन सभी घरवालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि वह नौकर सबसे पहले उठकर घर का सारा काम कर रहा था। नौकर डॉक्टर जाकिर हुसैन की विनयशीलता से अभिभूत हो गया। 
शिक्षा:-
जाकिर साहब ने अपने घर के लोगों को समझाया- व्यक्ति के आचरण में निहित विनम्रता का कमाल यही है कि वह सामने वाले व्यक्ति पर बेहद सरलता के साथ अपना प्रभाव डाल देता है। समाज में अपने व्यवहार द्वारा प्रभाव पैदा करना है तो जीवन में विनम्रता को स्थान दें।

Monday, September 7, 2020

Top 10 scorer for Quiz On Teachers Day 2020

1.  Satyam                               6.Surya Pratap
2.  Piyush Kumar Sharma  7.Kartikay
3.  Satyam Rastogi                8. Swapnil
4.  Avinav Katiyar.               9. Shourya Pratap Singh
5.  Yahi Shrivastava.            10. Anupam

Friday, September 4, 2020

सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन

शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के इस समाज को तराशते हैं। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है। शिक्षकों की इसी महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की, जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे।

अपने इस महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में शिक्षक दिवस मनाकर डॉ.राधाकृष्णन के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। 

 जीवन परिचय –  5 सितंबर 1888 को चेन्नई से लगभग 200 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित एक छोटे से कस्बे तिरुताणी में डॉक्टर राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वी. रामास्वामी और माता का नाम श्रीमती सीता झा था। रामास्वामी एक गरीब ब्राह्मण थे और तिरुताणी कस्बे के जमींदार के यहां एक साधारण कर्मचारी के समान कार्य करते थे।  डॉक्टर राधाकृष्णन अपने पिता की दूसरी संतान थे। उनके चार भाई और एक छोटी बहन थी छः बहन-भाईयों और दो माता-पिता को मिलाकर आठ सदस्यों के इस परिवार की आय अत्यंत सीमित थी। इस सीमित आय में भी डॉक्टर राधाकृष्णन ने सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। उन्होंने न केवल महान शिक्षाविद के रूप में ख्याति प्राप्त की,बल्कि देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया। स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शुरुआती जीवन तिरुतनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही बीता।  यद्यपि इनके पिता धार्मिक विचारों वाले इंसान थे लेकिन फिर भी उन्होंने राधाकृष्णन को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल,तिरुपति में दाखिल कराया। इसके बाद उन्होंने वेल्लूर और मद्रास कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त की। वह शुरू से ही एक मेधावी छात्र थे।  अपने विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने बाइबल के महत्वपूर्ण अंश याद कर लिए थे,जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान भी प्रदान किया गया था। उन्होंने वीर सावरकर और विवेकानंद के आदर्शों का भी गहन अध्ययन कर लिया था। सन 1902 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की जिसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की गई।  कला संकाय में स्नातक की परीक्षा में वह प्रथम आए। इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया और जल्द ही मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। डॉ.राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। 

Tuesday, September 1, 2020

Monday, August 31, 2020

Quiz Competition Result for Class VIII

Ist Position.                        Adwait Bhardwaj
IInd Position                       Aditya
IIIrd Position                       Aryan Singh
IVth Position                       Mohd Shan
Vth Position                        Rida Batool

Saturday, August 29, 2020

मेजर ध्यानचंद

ध्यानचंद (जन्म 29 अगस्त 1905- मृत्यु 3 दिसंबर 1979) एक भारतीय फील्ड हॉकी प्लेयर थे। जिन्हें बड़े पैमाने पर हॉकी का सबसे बेहतरीन खिलाड़ी माना जाता है। ध्यानचंद के गोल करने की क्षमता कमाल की थी। उनके खेलने के दौरान भारत ने हॉकी में तीन गोल्ड मैडल (1928, 1932 और 1936) ओलंपिक में जीते थे। यही वह समय था जब भारत हॉकी में सबसे अच्छी टीम था। 
हॉकी बॉल के साथ अपने कंट्रोले के लिए ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है। ध्यानचंद ने आखिरी अंतराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला। अपने अंतराष्ट्रीय करियर के दौरान वे 400 से अधिक गोल कर चुके थे। भारतीय सरकार ने अब तीसरा और उनके दौर में दूसरे स्थान का नागरिक सम्मान पद्मभूषण प्रदान 1956 में किया। उनका जन्मदिन भारत में नेशनल स्पोर्ट्स डे के तौर पर 29 अगस्त को मनाया जाता है। 
 
बचपन 
 
ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त को इलाहाबाद (उत्तरप्रदेश) में हुआ। राजपूत परिवार में जन्में ध्यानचंद रूपसिंह नाम के हॉकी खिलाड़ी के बड़े  भाई थे। उनके पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे और आर्मी के लिए हॉकी खेलते थे। ध्यानचंद के एक और भाई का नाम मूलसिंह था।  उनके पिता के बार बार होने वाले ट्रांस्फर के चलते ध्यानचंद को कक्षा छह के बाद पढाई छोड़नी पड़ी। उनका परिवार आखिर में उत्तरप्रदेश के झांसी में ही बस गया। 
 
करियर 
 
बचपन में ध्यानचंद का हॉकी पर कोई ध्यान नहीं था और उन्हें पहलवानी पसंद थी। ध्यानचंद ने भारतीय आर्मी ज्वाइन की उस समय उनकी उम्र 16 साल थी। वह रात में खेल की प्रेक्टिस करते थे और चांद के निकलने का इंतजार भी क्योंकि चांद निकलने के बाद ही उन्हें दिखाई देने लगता था। उस दौर में बाहर लाइट नहीं हुआ करती थी। चांद के इंतजार के कारण ही उनके दोस्त उन्हें चंद पुकारने लगे और उनका नाम ध्यानचंद पड़ा।  > 1922 से 1926 के बीच ध्यानचंद ने सिर्फ आर्मी हॉकी और रेजिमेंट गेम्स खेले। बाद में उन्हें इंडियन आर्मी टीम के लिए चुन लिया गया जिसे न्यूजीलैंड जाकर खेलना था। इस टीम ने 18 मैच जीते, 2 ड्रा हो गए और एक मैच टीम हार गई। देखने आए सभी दर्शक टीम के प्रशंसक हो गए। भारत लौटते ही ध्यानचंद को लांस नायक बना दिया गया था। 
 
ओलंपिक में बेहतरीन टीम भेजने के बाद, नई बनी हुई इंडियन हॉकी फेडरेशन ने 1928 के एमस्टरडैम ओलंपिक के लिए बढिया टीम तैयार करना शुरू कर दिया। 1925 में कई राज्यों के बीच टूर्नामेंट रखा गया। पांच टीमों ने इसमें भाग लिया जिसमें आर्मी ने ध्यानचंद को युनाइटेड प्रोविंस नाम की टीम में खेलने की इजाजत दी।  
 
एमस्टरडैम में हुए ओलंपिक में 1928 में भारतीय टीम के पहले ही मैच में ध्यानचंद ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ 3 गोल दागे। अगले दिन भारत ने बैल्जियम को 9-0 से हराया हालांकि ध्यानचंद ने सिर्फ एक गोल दागा था। अगला मैच भारत ने डेनमार्क के खिलाफ जीता जिसमें कुल 5 में से 3 गोल ध्यानचंद ने किए थे। दो दिन बाद, ध्यानचंद ने स्विट्जर्लैंड के खिलाफ 4 गोल किए और भारतीय टीम को जीत दिलाई।
 
हॉकी के जादूगर  
 
 
फायनल मैच 26 मई को नीदर्लैंड के खिलाफ था। भारतीय टीम के अच्छे खिलाड़ी फिरोज खान, अली शौकत, खेर सिंह बीमार थे। यहां तक की ध्यानचंद का भी स्वास्थ्य खराब था। इसके बावजूद भारत यह मैच 3-0 से जीतने में सफल रही। इसमें ध्यानचंद ने 2 गोल किए। इस तरह भारत ने हॉकी का पहला गोल्ड मैडल जीता। ध्यानचंद ओलंपिक में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी थे।
 
एक अखबार ने ध्यानचंद के लिए लिखा, 'ये हॉकी का मैच नहीं था बल्कि जादू था। ध्यानचंद असलियत में हॉकी के जादूगर हैं।' 
 
आखिरी दिनों में 
 
1951 में कैप्टन ध्यानचंद के सम्मान में नेशनल स्टेडियम में ध्यानचंद टूर्नामेंट रखा गया। कई सफल टूर्नामेंटों में हिस्सा लेने के बाद, 1956 में 51 वर्ष की उम्र में कैप्टन ध्यानचंद आर्मी से मेजर की पोस्ट से रिटार्यड हो गए। भारत सरकार ने उन्हें इसी वर्ष पद्मभूषण से सम्मानित किया। 
 
रिटायर्मेंट के बाद, राजस्थान के माउंटआबू में वह हॉकी कोच के रूप में कार्य करते रहे। इसके बाद पाटियाला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में वह चीफ हॉकी कोच बन गए। यहां कई साल तक वे इस पद पर रहे। अपने जीवन के आखिरी दिनों में ध्यानचंद अपने गृहनगर झांसी (उत्तरप्रदेश) में रहे। मेजर ध्यान चंद का 3 दिसंबर 1979 में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस दिल्ली में स्वर्गवास हो गया। उनकी रेजीमेंट पंजाब रेजीमेंट ने पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया।  

Thursday, August 27, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

   *!! हर व्यक्ति का महत्व !!*

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एक बार एक विद्यालय में परीक्षा चल रही थी। सभी बच्चे अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके आये थे। कक्षा का सबसे ज्यादा पढ़ने वाला और होशियार लड़का अपने पेपर की तैयारी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त था। उसको सभी प्रश्नों के उत्तर आते थे लेकिन जब उसने अंतिम प्रशन देखा तो वह चिन्तित हो गया। सबसे अंतिम प्रशन में पूछा गया था कि “विद्यालय में ऐसा कौन व्यक्ति है जो हमेशा सबसे पहले आता है? वह जो भी है, उसका नाम बताइए।”

परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के ध्यान में एक महिला आ रही थी। वही महिला जो सबसे पहले स्कूल में आकर स्कूल की साफ सफाई करती। पतली, सावलें रंग की और लम्बे कद की उस महिला की उम्र करीब 50 वर्ष के आसपास थी। ये चेहरा वहां परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के आगे घूम रहा था। लेकिन उस महिला का नाम कोई नहीं जानता था। इस सवाल के जवाब के रूप में कुछ बच्चों ने उसका रंग-रूप लिखा तो कुछ ने इस सवाल को ही छोड़ दिया। 

परीक्षा समाप्त हुई और सभी बच्चों ने अपने अध्यापक से सवाल किया कि “इस महिला का हमारी पढ़ाई से क्या सम्बन्ध है। इस सवाल का अध्यापक जी ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया “ये सवाल हमने इसलिए पूछा था कि आपको यह अहसास हो जाये कि आपके आसपास ऐसे कई लोग हैं जो महत्वपूर्ण कामों में लगे हुए है और आप उन्हें जानते तक नहीं। इसका मतलब आप जागरूक नहीं है।

शिक्षा:-

हमारे आसपास की हर चीज, व्यक्ति का विशेष महत्व होता है, वह खास होता है। किसी को भी नजरअंदाज नहीं करें।

Sunday, August 23, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

                                                                      *!! दान का महत्व !!*

एक बहुत प्रसिद्ध संत थे जिन्होंने समाज कल्याण के लिए एक मिशन शुरू किया। जिसे आगे बढ़ाने के लिए उन्हें तन मन धन तीनों की ही आवश्यक्ता थी। इस कार्य में उनके शिष्यों ने तन मन से भाग लिया और इन कार्यकर्ताओं ने धन के लिए दानियों को खोजना शुरू किया।
एक दिन, एक शिष्य कलकत्ता पहुँचा। जहाँ उसने एक दानवीर सेठ का नाम सुना। यह जान कर उस शिष्य ने सोचा कि इन्हें गुरूजी से मिलवाना उचित होगा, हो सकता है यह हमारे समाज कल्याण के कार्य में दान दे।
इस कारण शिष्य सेठ जी को गुरु जी से मिलवाने ले गए। गुरूजी से मिल कर सेठ जी ने कहा – हे महंत जी आपके इस समाज कल्याण में, मैं अपना योगदान देना चाहता हूँ पर मेरी एक मंशा है जो आपको स्वीकार करनी होगी। आपके इस कार्य के लिए मैं भवन निर्माण करवाना चाहता हूँ और प्रत्येक कमरे के आगे मैं अपने परिजनों का नाम लिखवाना चाहता हूँ । इस हेतु मैं दान की राशि एवं नामों की सूचि संग लाया हूँ और यह कह कर सेठ जी दान गुरु जी के सामने रखते हैं।

गुरु जी थोड़े तीखे स्वर में दान वापस लौटा देते हैं और अपने शिष्य को डाटते हुए कहते हैं कि- हे अज्ञानी! तुम किसे साथ ले आये हो, ये तो अपनों के नाम का कब्रिस्तान बनाना चाहते हैं। इन्हें तो दान और मेरे मिशन दोनों का ही महत्व समझ नहीं आया।
यह देख सेठ जी हैरान थे क्यूंकि उन्हें इस तरह से दान लौटा देने वाले संत नहीं मिले थे। इस घटना से सेठ जी को दान का महत्व समझ आया। कुछ दिनों बाद आश्रम आकार उन्होंने श्रध्दा पूर्वक विनय किया और निस्वार्थ भाव दान किया तब उन्हें जो आतंरिक सुख प्राप्त हुआ वो कभी पहले किसी भी दान से नहीं हुआ था।

*सीख/शिक्षा:-*
दान का स्वरूप दिखावा नहीं होता। जब तक निःस्वार्थ भाव से दान नहीं दिया जाता तब तक वह स्वीकार्य नहीं होता और दानी को आत्म शांति अनुभव नहीं होती। किसी की मदद करके भूल जाना ही दानी की पहचान है जो इस कार्य को उपकार मानता है, असल में वो दानी नहीं हैं ना उसे दान का अर्थ पता हैं।

Top 10 scorer for Independence Day Quiz

 1. Vagish Kumar.                                                6. Vedant Saxena

2. Shashank.                                                        7. Mohd. Shan

3. Ananya Bajpai.                                                 8. Mukul Raj Gangwar

4. Syed Sabir Ahmed.                                          9. Saksham

5. Shorya Pratap Singh.                                      10. Akshat Saxena

Saturday, August 22, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

   !! *गुलामी की सीख* !!

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दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था लुक़मान। लुक़मान था तो सिर्फ एक गुलाम लेकिन वह बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा- सुनते हैं, कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। 

अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ। लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने कहा- अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है। मालिक ने आदेश देते हुए कहा- “अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।”

लुक़मान बाहर गया, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। फिर से कारण पूछने पर लुक़मान ने कहा- “अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा-ही-बुरा है। “उसने आगे कहते हुए कहा- “मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है…क्या बोलें? कैसे शब्द बोलें, कब बोलें। इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है। 

कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है । संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। 

भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था। “मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों को सुनकर बहुत खुश हुए ; आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और उन्होंने उसे आजाद कर दिया।


*शिक्षा*:-

मित्रों, मधुर वाणी एक वरदान है जो हमें लोकप्रिय बनाती है वहीँ कर्कश या तीखी बोली हमें अपयश दिलाती है और हमारी प्रतिष्ठा को कम करती है। आपकी वाणी कैसी है ? यदि वो तीखी है या सामान्य भी है तो उसे मीठा बनाने का प्रयास करिये। आपकी वाणी आपके व्यत्कित्व का प्रतिबिम्ब है, उसे अच्छा होना ही चाहिए।


Thursday, August 20, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

                                                                        *!! चिड़िया की ज्ञान की बातें !!*


राजा के विशाल महल में एक सुंदर वाटिका थी, जिसमें अंगूरों की एक बेल लगी थी। वहां रोज एक चिड़िया आती और मीठे अंगूर चुन-चुनकर खा जाती, मगर अधपके और खट्टे अंगूरों को नीचे गिरा देती। माली ने चिड़िया को पकड़ने की बहुत कोशिश की पर वह हाथ नहीं आई। हताश होकर एक दिन माली ने राजा को यह बात बताई। यह सुनकर भानुप्रताप को आश्चर्य हुआ। उसने चिड़िया को सबक सिखाने की ठान ली।

एक दिन वह वाटिका में छिपकर बैठ गया। जब चिड़िया अंगूर खाने आई तो राजा ने फुर्ती से उसे पकड़ लिया। जब राजा चिड़िया को मारने लगा, तो चिड़िया ने कहा, 'हे राजन, मुझे मत मारो। मैं आपको ज्ञान की 4 महत्वपूर्ण बातें बताऊंगी।' राजा ने कहा, 'जल्दी बता।' चिड़िया बोली, 'हे राजन, सबसे पहले तो हाथ में आए शत्रु को कभी मत छोड़ो।' राजा ने कहा, 'दूसरी बात बता।' चिड़िया ने कहा, 'असंभव बात पर भूलकर भी विश्वास मत करो और तीसरी बात यह है कि बीती बातों पर कभी पश्चाताप मत करो।' राजा ने कहा, 'अब चौथी बात भी जल्दी बता दो।' इस पर चिड़िया बोली, 'चौथी बात बड़ी गूढ़ और रहस्यमयी है। मुझे जरा ढीला छोड़ दें क्योंकि मेरा दम घुट रहा है। कुछ सांस लेकर ही बता सकूंगी।' चिड़िया की बात सुन जैसे ही राजा ने अपना हाथ ढीला किया, चिड़िया उड़कर एक डाल पर बैठ गई और बोली, 'मेरे पेट में दो हीरे हैं।'

यह सुनकर राजा पश्चाताप में डूब गया। राजा की हालत देख चिड़िया बोली, 'हे राजन, ज्ञान की बात सुनने और पढ़ने से कुछ लाभ नहीं होता, उस पर अमल करने से होता है। आपने मेरी बात नहीं मानी। मैं आपकी शत्रु थी, फिर भी आपने पकड़कर मुझे छोड़ दिया। मैंने यह असंभव बात कही कि मेरे पेट में दो हीरे हैं, फिर भी आपने उस पर भरोसा कर लिया। आपके हाथ में वे काल्पनिक हीरे नहीं आए तो आप पछताने लगे।
उपदेशों को जीवन में उतारे बगैर उनका कोई मोल नहीं।

आज की प्रश्नोतरी का लिंक

http://quizizz.com/join?gc=09563136

Wednesday, August 19, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

                                                 *!! एकाग्रचित्त बनें !!* 

एक आदमी को किसी ने सुझाव दिया कि दूर से पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास एक कुआं खोद लेते? हमेशा के लिए पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू किया। लेकिन सात-आठ फीट खोदने के बाद उसे पानी तो क्या, गीली मिट्टी का भी चिह्न नहीं मिला। उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह खुदाई शुरू की। लेकिन दस फीट खोदने के बाद भी उसमें पानी नहीं निकला। उसने तीसरी जगह कुआं खोदा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इस क्रम में उसने आठ-दस फीट के दस कुएं खोद डाले, पानी नहीं मिला। वह निराश होकर उस आदमी के पास गया, जिसने कुआं खोदने की सलाह दी थी।

उसे बताया कि मैंने दस कुएं खोद डाले, पानी एक में भी नहीं निकला। उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। वह स्वयं चलकर उस स्थान पर आया, जहां उसने दस गड्ढे खोद रखे थे। उनकी गहराई देखकर वह समझ गया। बोला, ‘दस कुआं खोदने की बजाए एक कुएं में ही तुम अपना सारा परिश्रम और पुरूषार्थ लगाते तो पानी कब का मिल गया होता। तुम सब गड्ढों को बंद कर दो, केवल एक को गहरा करते जाओ, पानी निकल आएगा।’

*शिक्षा:-*

कहने का मतलब यही कि आज की स्थिति यही है। आदमी हर काम फटाफट करना चाहता है। किसी के पास धैर्य नहीं है। इसी तरह पचासों योजनाएं एक साथ चलाता है और पूरी एक भी नहीं हो पाती।

Tuesday, August 18, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

🇮🇳!! *पत्थर की कीमत* !!🇮🇳

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एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था, किन्तु गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया। जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा- “बेटा, मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये  पत्थर छोड़ गए थे, तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमत का पता लगा, ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है, इसे बेचना नहीं है।” युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली।” 

अम्मा, तुम इस  पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?”, युवक ने पूछा। “देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो… तौलने के काम आएगा।” सब्जी वाली बोली। युवक आगे बढ़ गया। इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही। दुकानदार बोला- “इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ… देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ।” युवक इस बार एक सुनार के पास गया। 

सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की। फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला और अंत में युवक शहर के सबसे बड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला- “श्रीमान, कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें।” विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला- “यह तो एक अमूल्य हीरा है, करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है।”

🇮🇳 *शिक्षा*:-

मित्रों, यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है। यह अलग बात है कि हममें से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझा तुच्छ कामो में लगा देते हैं। आइये हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें।

Wednesday, August 12, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

                                            आखिरी उपदेश

गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों  में आज काफी उत्साह था , उनकी बारह वर्षों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और अब वो अपने घरों को लौट सकते थे . गुरु जी भी अपने शिष्यों की शिक्षा-दीक्षा से प्रसन्न थे और गुरुकुल की परंपरा के अनुसार शिष्यों को आखिरी उपदेश देने की तैयारी कर रहे थे।

उन्होंने ऊँची आवाज़ में कहा , ” आप सभी एक जगह एकत्रित हो जाएं , मुझे आपको आखिरी उपदेश देना है .”

गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए सभी शिष्य एक जगह एकत्रित हो गए .

गुरु जी ने अपने हाथ में कुछ लकड़ी के खिलौने पकडे हुए थे , उन्होंने शिष्यों को खिलौने दिखाते हुए कहा , ” आप को इन तीनो खिलौनों में अंतर ढूँढने हैं।

सभी शिष्य ध्यानपूर्वक खिलौनों को देखने लगे , तीनो लकड़ी से बने बिलकुल एक समान दिखने वाले गुड्डे थे . सभी चकित थे की भला इनमे क्या अंतर हो सकता है ?


तभी किसी ने कहा , ” अरे , ये देखो इस गुड्डे के में एक छेद  है .”

यह संकेत काफी था ,जल्द ही शिष्यों ने पता लगा लिया और गुरु जी से बोले ,

” गुरु जी इन गुड्डों में बस इतना ही अंतर है कि –


एक के दोनों कान में छेद है

दूसरे के एक कान और एक मुंह में छेद है ,

और तीसरे के सिर्फ एक कान में छेद है  “


गुरु जी बोले , ” बिलकुल सही , और उन्होंने धातु का एक पतला तार देते हुए उसे कान के छेद में डालने के लिए कहा .”

 शिष्यों  ने वैसा ही किया . तार पहले गुड्डे के एक कान से होता हुआ दूसरे कान से निकल गया , दूसरे गुड्डे के कान से होते हुए मुंह से निकल गया और तीसरे के कान में घुसा पर कहीं से निकल नहीं पाया .

तब  गुरु जी ने शिष्यों से गुड्डे अपने हाथ में लेते हुए कहा , ” प्रिय शिष्यों , इन तीन गुड्डों की तरह ही आपके जीवन में तीन तरह के व्यक्ति आयेंगे .

पहला गुड्डा ऐसे व्यक्तियों को दर्शाता है जो आपकी बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देंगे ,आप ऐसे लोगों से कभी अपनी समस्या साझा ना करें .

दूसरा गुड्डा ऐसे लोगों को दर्शाता है जो आपकी बात सुनते हैं और उसे दूसरों के सामने जा कर बोलते हैं , इनसे बचें , और कभी अपनी महत्त्वपूर्ण बातें इन्हें ना बताएँ।

और  तीसरा गुड्डा ऐसे लोगों का प्रतीक है जिनपर आप भरोसा कर सकते हैं , और उनसे किसी भी तरह का विचार – विमर्श कर सकते हैं , सलाह ले सकते हैं , यही वो लोग हैं जो आपकी ताकत है और इन्हें आपको कभी नहीं खोना चाहिए . “ 

Tuesday, August 11, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

                                          कामयाबी की बाधा।

*एक बार स्वामी विवेकानन्द के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुखी लग रहा था।*

वह व्यक्ति आते ही स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला...
*“महाराज! मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से भी काम करता हूँ लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाया। भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ।“*

स्वामी जी उस व्यक्ति की परेशानी को पल भर में ही समझ गए। उन दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था, उन्होंने उस व्यक्ति से कहा...
*“तुम कुछ दूर जरा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।“*

*उस व्यक्ति ने बड़े आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखा और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा। काफी देर तक अच्छी खासी सैर करा कर जब वो व्यक्ति वापस स्वामी जी के पास पहुँचा तो स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी चमक रहा था, जबकि कुत्ता हाँफ रहा था और बहुत थका हुआ लग रहा था।*

स्वामी जी ने उससे पूछा....
*“कि ये कुत्ता इतना ज्यादा कैसे थक गया? जबकि तुम तो अभी भी साफ सुथरे और बिना थके दिख रहे हो।“*

व्यक्ति ने कहा....
*“मैं तो सीधा अपने रास्ते पे चल रहा था, लेकिन ये कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था और लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता था। हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया है लेकिन फिर भी इस कुत्ते ने मेरे से कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है इसीलिए ये थक गया है।“*

स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा....
*“यही तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब है, तुम्हारी मंजिल तुम्हारे आस पास ही है वो ज्यादा दूर नहीं है लेकिन तुम मंजिल पे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और अपनी मंजिल से दूर होते चले जाते हो।“*

Friday, August 7, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

 एक बार एक आदमी रेगिस्तान में कहीं भटक गया। उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी-बहुत चीजें थीं वो जल्द ही ख़त्म हो गयीं और पिछले दो दिनों से वो पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा था। वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घंटों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत पक्की है। पर कहीं न कहें उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा… तभी उसे एक झोपड़ी दिखाई दी! उसे अपनी आँखों यकीन नहीं हुआ।


पहले भी वह मृगतृष्णा और भ्रम के कारण धोखा खा चुका था…पर बेचारे के पास यकीन करने के आलावा को चारा भी तो न था! आखिर ये उसकी आखिरी उम्मीद जो थी! वह अपनी बची-खुची ताकत से झोपडी की तरफ रेंगने लगा…जैसे-जैसे करीब पहुँचता उसकी उम्मीद बढती जाती… और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक झोपड़ी थी! पर ये क्या? झोपडी तो वीरान पड़ी थी! मानो सालों से कोई वहां भटका न हो। 


फिर भी पानी की उम्मीद में आदमी झोपड़ी के अन्दर घुसा, अन्दर का नजारा देख उसे अपनी आँखों पे यकीन नहीं हुआ…वहां एक हैण्ड पंप लगा था, आदमी एक नई उर्जा से भर गया…पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसता वह तेजी से हैण्ड पंप चलाने लगा। लेकिंग हैण्ड पंप तो कब का सूख चुका था…आदमी निराश हो गया…उसे लगा कि अब उसे मरने से कोई नहीं बचा सकता…वह निढाल हो कर गिर पड़ा! तभी उसे झोपड़ी के छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल दिखी! वह किसी तरह उसकी तरफ लपका!

 

वह उसे खोल कर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल से चिपका एक कागज़ दिखा….उस पर लिखा था- इस पानी का प्रयोग हैण्ड पंप चलाने के लिए करो…और वापस बोतल भर कर रखना नहीं भूलना। ये एक अजीब सी स्थिति थी, आदमी को समझ नहीं आ रहा था कि वो पानी पिए या उसे हैण्ड पंप में डालकर उसे चालू करे! उसके मन में तमाम सवाल उठने लगे… अगर पानी डालने पे भी पंप नहीं चला….अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुई…और क्या पता जमीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो।


लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े….क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो…वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे! फिर कुछ सोचने के बाद उसने बोतल खोली और कांपते हाथों से पानी पंप में डालने लगा। पानी डालकर उसने भगवान् से प्रार्थना की और पंप चलाने लगा…एक-दो-तीन….और हैण्ड पंप से ठंडा-ठंडा पानी निकलने लगा! वो पानी किसी अमृत से कम नहीं था… आदमी ने जी भर के पानी पिया, उसकी जान में जान आ गयी, दिमाग काम करने लगा। 


उसने बोतल में फिर से पानी भर दिया और उसे छत से बांध दिया। जब वो ऐसा कर रहा था तभी उसे अपने सामने एक और शीशे की बोतल दिखी। खोला तो उसमे एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था जिसमे रेगिस्तान से निकलने का रास्ता था। आदमी ने रास्ता याद कर लिया और नक़्शे वाली बोतल को वापस वहीँ रख दया। इसके बाद वो अपनी बोतलों में पानी भर कर वहां से जाने लगा।


कुछ आगे बढ़ कर उसने एक बार पीछे मुड़ कर देखा…फिर कुछ सोच कर वापस उस झोपडी में गया और पानी से भरी बोतल पे चिपके कागज़ को उतार कर उस पर कुछ लिखने लगा। उसने लिखा- मेरा यकीन करिए…ये काम करता है!


*शिक्षा*:-

दोस्तों, ये कहानी Life के बारे में है। ये हमे सिखाती है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी अपनी उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए और इस कहानी से ये भी शिक्षा मिलती है कि कुछ बहुत बड़ा पाने से पहले हमें अपनी ओर से भी कुछ देना होता है। जैसे उस आदमी ने नल चलाने के लिए मौजूद पूरा पानी उसमे डाल दिया। देखा जाए तो इस कहानी में पानी जीवन में मौजूद अच्छी चीजों को दर्शाता है।


कुछ ऐसी चीजें जिसकी हमारे नार में Value है। किसी के लिए ये ज्ञान हो सकता है तो किसी के लिए प्रेम तो किसी और के लिए पैसा! ये जो कुछ भी है उसे पाने के लिए पहले हमें अपनी तरफ से उसे कर्म रुपी हैण्ड पंप में डालना होता है और फिर बदले में आप अपने योगदान से कहीं अधिक मात्रा में उसे वापस पाते हैं।

Wednesday, July 29, 2020

*आज का प्ररेक प्रसंग *

एक बार की बात एक संत थे । जो बहुत ही साधारण तरीके से अपना जीवन निर्वाह करते थे ,पर वह बहुत उच्च कोटि के थे । उनके पास 7-8 शिष्य रहते थे । उनमें से एक शिष्य उनके बताए रास्ते पर चलता था । और संत उस शिष्य से बहुत स्नेह रखते थे ।

धीरे-धीरे उस शिष्य की ख्याति भी बढ़ने लगी । और सभी लोग उसकी मिसाल देने  लगे की शिष्य हो तो ऐसा । और इन सबसे संत बहुत खुश होते थे ।

एक दिन शिष्य ने संत से कहा कि में कुछ समय एकांत में भक्ति करना चाहता हूँ । तो संत ने कहा तुम यहाँ रह के भी भक्ति कर सकते हो और जैसा तुम उचित समझों ।

शिष्य ने गुरु से इजाजत ली और जंगल की और एकांत में निकल गया ।

ठीक दस साल बाद वह शिष्य अपने गुरु से वापस मिलने आया । सब को मालूम पड़ने पर भीड़ इक्क्ठा ही गयी । और शिष्य की खूब तारीफ हुई और वह शिष्य की चर्चा  सभी जगह चल रही थी । संत भी अपने प्यारे शिष्य से मिलकर बहुत खुश थे ।

वो शिष्य ने कुछ अदभुत कारनामे भी करें तो वह प्रचलित हो गया । सब जगह शिष्य की चर्चा होने लगी । और दुर- दूर से लोग उससे मिलने आने लगे । इधर संत को चिंताए सताने लगी ।

एक दिन गुरु और सभी शिष्यों को पास ही एक गांव में जाना था। रास्ते में एक नदी पड़ती थीं । उस नदी को पार करने के लिए नाव से जाना पड़ता था । गुरु और सभी शिष्य नाव का इंतजार कर रहे थे । और गाँव के भी बहुत सारे लोग थे ।

उस शिष्य ने गुरु से कहा कि हम क्यों ना हम पानी पर चल कर नदी पार कर लें । इस पर गुरु ने कहा --पानी पर कैसे चल सकते है सब डूब जायेंगे ।
इतने में शिष्य पानी की और बढ़ा और पानी पर चलने लगा । और उसने सबको कहा कि तुम भी आ जाओ । पर किसी की हिम्मत नहीं हुई । शिष्य को पानी पर चलता देख कर सब हैरत में पड़ गए । और शिष्य की वाहवाही होने लगी । शिष्य ने पानी पर चलकर नदी पार कर ली । और गुरु और बाकी शिष्य ने नाव में बैठकर नदी को पार किया ।

सभी शिष्यों ने अपने गुरु की चिंता को पढ़ लिया था ।

जब वापस अपनी कुटिया में सब आ गये तो शिष्यों ने गुरु से कहा की आप के शिष्य ने आपका नाम रोशन कर दिया और आप खुश नजर नहीं आ रहें हैं ।

इतने में वह शिष्य भी वहाँ आ गया और बोला गुरूवर मुझसे कोई गलती हुई हो तो बताइये । गुरु ने कहा --नहीं कोई गलती नही हुई हैं ।
शिष्य बोला --या तो मेरी प्रसिद्धि से आपको कोई परेशानी हैं ,क्योंकि आपके चेहरे से साफ झलक रहा है, की आप परेशान हैं ।

संत ने कहा -- में बोलना नहीं चाहता था पर तुमने यह कहकर मुझे मजबूर कर दिया । संत ने शिष्य से कहा -तुमने जो पानी पर चलकर नदी पार करी तुम्हें बहुत महँगी पड़ी ।

शिष्य बोला कैसे -- मैंने तो  नदी फ्री में पार कर ली और मुझे इज्जत भी मिली ।

गुरु ने हँस कर कहा-- जो चीज मात्र पाँच रुपये में पार की जा सकती थी ,उसके लिए तुमने अपने दस साल की भक्ति उस चीज में लगा दी । तुमने जरा सी सिद्धि के पीछे अभी तक के किये तप-त्याग को बर्बाद कर लिया । और अपनी भक्ति का सौदा कर लिया ,और ईश्वर के मिलन के सारे रास्ते बंद कर  लिए ।

ये सुनकर शिष्य गुरु के चरणों में गिर पड़ा और दहाड़ मारकर रोने लगा । गुरु को उस पर दया आ गयी । उन्होंने उसे अपने पास रख लिया पर वो अपने जीवन का अमूल्य समय और तपस्या को खो चुका था ।

देखा दोस्तों जरा सी सिद्धि या महान बनने के लालच में उस शिष्य ने अपनी भक्ति को खत्म कर लिया ।

हमेशा अपने गुरु की कही बात पर चलो अपने मन से कुछ मत करो । क्योंकि की गुरु की कही बात पत्थर की लकीर है , उसे ईश्वर भी नहीं काटता ।

Sunday, July 26, 2020

*कारगिल विजय दिवस’ : 26 जुलाई1999*

*कारगिल विजय दिवस’ : 26 जुलाई1999*
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भारतीय सेना के शौर्य का प्रतीक ‘कारगिल विजय दिवस’ 26 जुलाई को मनाया जाता हैं। इस साल 21वीं वर्षगांठ है। साल 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों नेे अदम्य शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। कारगिल विजय दिवस केे मौके पर देेेशवासी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर जवानों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

कारगिल युद्ध को जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर में लाइन ऑफ कंट्रोल के किनारे, 1999 के मई-जुलाई के दौरान लड़ा गया था। इस युद्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 3 हजार सैनिकों को मार गिराया था। यह युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना को कई बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। पाकिस्तानी सैनिक ऊंची पहाड़ियों पर थे जबकि हमारे सैनिकों को गहरी खाई में रहकर उनसे मुकाबला करना था।

भारतीय जवानों को आड़ लेकर या रात में चढ़ाई कर ऊपर पहुंचना पड़ रहा था, जोकि बहुत जोखिमपूर्ण था। लेकिन भारतीय सैनिकों ने हर चुनौती को स्वीकार किया। कारगिल युद्ध 60 दिनों तक चला और अंततः 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। भारत में युद्ध में विजय पताका फहराई और देश के स्वाभिमान के इस प्रतीक को ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया। कारगिल विजय दिवस के इस खास मौके पर शहीदों को याद करते हुए ये मैसेज और कोट्स अपनों से शेयर करें और शहीदों को श्रद्धांजलि दें।


1. दुनिया करती जिसे सलाम,
    वो है भारत का सैनिक महान,
    रणभूमि में दुश्मन को जो चटाए धूल,
    वो है भारत का जवान।

कारगिल विजय दिवस की बधाई


2. मैं हूं भारतीय सेना का वीर जवान,
    कभी नहीं झुकने दूंगा भारत का मान,
    तिरंगा है मेरी आन, बान शान,
    कभी नहीं होने दूंगा भारत का अपमान।

कारगिल विजय दिवस की शुभकामनाएं
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Wednesday, July 22, 2020

*आज का प्रेरक प्रसंग*

एक किसान था. उसके खेत में एक पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे.
रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा और इस बार वही हुआ, किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया. किसान क्रोधित हो उठा, और उसने निश्चय किया कि आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा.
वह तुरंत गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा और बोल, ” यह देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे आज उखाड़कर खेत के बाहर फ़ेंक देना है.” और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लगा, पर यह क्या ! अभी उसने एक-दो बार ही मारा था कि पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा , “क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला ??”
किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था ! उसे पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुकसान उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने उसका मज़ाक बनता .
हम भी कई बार ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाय तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बातकी है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से हल पाकर आगे बढ़ सकते हैं.